Grashtmd sage mentioned in Chapter 18 of ayurveda comes ... Mythological narrative description of these can be found in the great sage ! At the core of textile yarn and cotton yarn is produced . The first tree planted sage Grashtmd cotton and cotton obtained from this experiment ten set . The yarn made from cotton . How to create garments from the yarn , it was the problem . He made wooden spindle to its solution . Vedic language , crude fiber yarn says. Otu when the fiber is said to save more ! The process of making garments from yarn Grashtmd sage said . ( Sage radicalism of the astronomer had Grashtmd )
Atharva Veda is described in detail in the Sun ! ( Atharva Veda 2 . 4 . 5 . ) Sun Sutn is mentioned by name in the Satapatha Bramhn ( Satapatha Bramhn 3.2.1. & 6 . 1 . 24 ) See here - www.jstor.org/stable/
In India, silk , etc. by cell eternity garments were made from the same . Made garments , sarees etc. Gold , silver etc., embroidery , dyeing had to work . Clothes different colors were made in natural colors ! And all the time in the world of Indian textiles exports. Demand in the ancient Greek , Egypt and Arab traders began in bulk ! The various provinces and cities in our country and in the dealer selling used.
Author Mr. Pramod Kumar Dutt Minister of Indian textiles in the preface of his research papers and their significance in terms of what is written in the context of observations of different people -
should be "
In the thirteenth century, when Marco Polo arrived unique declared that ' in any corner of the world of beautiful and wonderful cotton construction site along the Coromandel and will Mclipattnm . "Click here - www.shsu.edu/~his_ncp/
Tell an interesting phenomenon - the famous historian Yadunath his book " A History of Aurangzeb writes" - "the palace was once the daughter of Aurangzeb Aurangzeb was very angry at her clothes and she said , " loser ! Your inner shame - Haya went where his organs are showing the world who you are . " His daughter said to him , " What do father? , The garment is worn , he folded up to seven times a after wearing . "(A History of Aurangzeb: Volume 3 http://www.amazon.com/
On tour to India in the mid-seventeenth century French businessman describing Tverrnier cottons writes -
" They (the clothes ) are so fine and light that keep on hand does not even know . The fine embroidery yarn is barely noticeable . " He adds , similar to Calicut in Malwa province so fine ' Calicut ' ( the name of cotton fabric ) that causes the wearer's body, naked as it looks neat values are.
Another writes his memoirs Tverrnier -
place of muslin turned out to be long . "
www.columbia.edu/itc/
Mr. Sir Joseph Banks . Wilkins was a piece of muslin woven in India . Banks says it 's past time for the best piece of textile closely . Banks which the self- analysis , measurement of the garments sent in writing to remove the India House , he follows ! "
Min. Wilkins says that the pieces Banks -34.3 grain weight (a pound is 7000 grains and grain are 15.5 grams in 1 . ) -5 Yards in length was 7 inches , the threads -198 were . The total length of the yarn was -1028.5 yards . Ie 29.98 yards in 1 grain was to create thread . This means that the thread was Kaunt 2425 . In today's modern technology, there is more than one thread Kaunt 500-600 .
For information, let me tell you , Charles Wilkins of the person who first English translation of Sri Gita did!
Yes sir . Berdwud India at the request of the Secretary of State wrote a book , The Industrial Arts of India . On page 83 he writes that it is " woven in India is reported that fifteen yards long and a yard wide of Dhaka muslin grain weight was only 100 . "
This book is written on page 95 - " British and other European writers here muslin , cotton and silk fabrics ' peacock eye ' Peacock throat ' ' Sun Moon Stars ' stars of the Wind ', ' running water ' and ' evening dew ' have as many poetic analogies .
The production of cotton muslin cloth and England respectively in 1772 and opened in 1781 . He's also looking to India to learn !
The European writes Edward Benz -
Where such garments were made , cottage industries that destroyed the British and the Mughals boggy . Agunte who make them , he was cut . Independence ( ? ) After having had hoped , we re- connect to their roots . The severed thumb , they meet again. Western technology even today aura ( ? ) Is living in the country . Thought, need to change it .
It 's the duty of every Sanatani -lost culture , art and science that tries to retrieve , everything does not need to stare into the face of foreigners ... That's all , this is available at Dev Bhoomi ... It is aaryaavart Sanatani world knowledge is always being shared ...
#AIUFO
in Hindi :
प्राचीन सनातनी वस्त्र उद्योग . Ancient Indian Textile Industry
यजुर्वेद के १८ वें अध्याय में ऋषि ग्राश्त्मद का उल्लेख आता है... इन महान ऋषि का वर्णन पौराणिक आख्यानों में भी मिलता है! वस्त्रोद्योग के मूल में सूत है और सूत का उत्पादन कपास से होता है। सर्वप्रथम ऋषि ग्राश्त्मद ने कपास का पेड़ बोया और अपने इस प्रयोग से दस सेर कपास प्राप्त की। इस कपास से सूत बनाया। इस सूत से वस्त्र कैसे बनाना, यह समस्या थी। इसके समाधान के लिए उन्होंने लकड़ी की तकली बनायी। वैदिक भाषा में कच्चे धागे को तंतु कहते हैं। तंतु बनाते समय अधिक बचा हिस्सा ओतु कहा जाता है! इस प्रकार सूत से वस्त्र बनाने की प्रक्रिया ऋषि ग्राश्त्मद ने दी। (ऋषि ग्राश्त्मद ने खगोल शास्त्र का विवेचन भी लिया था)
अथर्ववेद में सन का विस्तृत वर्णन किया गया है! (अथर्ववेद २. ४. ५.) सन सूतं के नाम से इसे शतपथ ब्राम्हण में भी बताया गया है (शतपथ ब्राम्हण ३.२.१. एवं ६. १. २४) यहाँ देंखे - www.jstor.org/stable/
भारत में रेशम, कोशा आदि के द्वारा वस्त्र सनातन काल से ही बनते थे। बने हुए वस्त्रों, साड़ियों आदि पर सोने, चांदी आदि की कढ़ाई, रंगाई का काम होने था। वस्त्रों को भिन्न-भिन्न प्राकृतिक रंगों में रंग कर तैयार किया जाता था! और एक समय में भारतीय वस्त्रों का सारे विश्व में निर्यात होता था। बाद में इनकी मांग प्राचीन ग्रीक, इजिप्ट और अरब व्यापारियों द्वारा भारी मात्रा में होने लगी! और ये व्यापारी इसका अपने देश के विभिन्न प्रांतों व नगरों में विक्रय करते थे।
लेखक श्री प्रमोद कुमार दत्त जी ने अपने शोध पत्र की प्रस्तावना में भारतीय वस्त्रों के वैशिष्ट्य और उनके संदर्भ में विभिन्न लोगों की टिप्पणियों के संदर्भ में लिखा है की -
"‘नवीं शताब्दी में अरब के दो मुसलमान यात्री भारत आए। उन्होंने लिखा कि भारतीय वस्त्र इतने असामान्य हैं कि ऐसे वस्त्र और कहीं नहीं देखे गए। इतना महीन तथा इतनी सफाई और सुन्दरता का वस्त्र बनता है कि एक पूरा थान अंगूठी के अन्दर से निकाल लिया जाए"
तेरहवीं सदी में आए मार्को पोलो ने तो अनूठी घोषणा की कि ‘विश्व के किसी भी कोने में प्राप्त सुन्दर व बढ़िया सूती वस्त्र का निर्माण स्थल कोरोमंडल और मछलीपट्टनम् के किनारे होंगे।‘ यहाँ क्लिक करें - www.shsu.edu/~his_ncp/
एक रोचक घटना बताता हूँ - प्रसिद्ध इतिहासकार यदुनाथ सरकार अपनी पुस्तक "ए हिस्ट्री ऑफ़ औरंगजेब" में लिखते है- "एक बार औरंगजेब की पुत्री दरबार में गई तो औरंगजेब उसके वस्त्रों को देखकर बहुत गुस्सा हुआ और उसने कहा, "नामाकूल! तेरे अंदर की शर्म-हया कहां चली गई जो दुनिया को तू अपने अंग दिखा रही है।" उस पर उसकी पुत्री ने कहा, "क्या करूं अब्बाजान?, यह वस्त्र जो पहना है, वह एक के ऊपर एक ऐसे सात बार तह करने के बाद पहना है।" (A History of Aurangzeb : Volume 3 http://www.amazon.com/
सत्रहवीं सदी के मध्य में भारत भ्रमण पर आने वाले फ्रेंच व्यापारी टवेर्निएर सूती वस्त्रों का वर्णन करते हुए लिखता है-
‘वे (कपडे) इतने सुन्दर और हल्के हैं कि हाथ पर रखें तो पता भी नहीं लगता। सूत की महीन कढ़ाई मुश्किल से नजर आती है।‘ वह आगे कहता है कि कालीकट की ही भांति मालवा प्रांत में भी इतना महीन ‘कालीकट‘ (सूती कपड़े का नाम) बनता है कि पहनने वाले का शरीर ऐसा साफ दिखता है मानों वह नग्न ही हो।
टवेर्निएर अपना एक और संस्मरण लिखता है-
"एक पर्शियन राजदूत भारत से वापस गया तो उसने अपने सुल्तान को एक नारियल भेंट में दिया। दरबारियों को आश्चर्य हुआ कि सुल्तान को नारियल भेंट में दे रहा है, पर उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उस नारियल को खोला तो उसमें से ३० गज लम्बा मलमल का थान निकला।‘
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सर जोसेफ बैंक्स को मि. विल्किंस ने भारत की बुनी मलमल का एक टुकड़ा दिया। बैंक्स कहते हैं कि यह विगत कुछ समय का वस्त्र की बारीकी का श्रेष्ठतम नमूना है। बैंक्स ने स्वयं जो विश्लेषण, माप उस वस्त्र का निकालकर इंडिया हाउस को लिखकर भेजा, वह निम्न प्रकार है!"
मि. बैंक्स कहते हैं कि विल्किंस द्वारा दिए गए टुकड़े का वजन-३४.३ ग्रेन था (एक पाउण्ड में ७००० ग्रेन होते हैं तथा १ ग्राम में १५.५ ग्रेन होते हैं।), लम्बाई-५ गज ७ इंच थी, इसमें धागे-१९८ थे। यानी धागे की कुल लम्बाई-१०२८.५ गज थी। अर्थात् १ ग्रेन में २९.९८ गज धागा बना था। इसका मतलब है कि यह धागा २४२५ काऊंट का था। आज की आधुनिक तकनीक में भी धागा ५००-६०० काऊंट से ज्यादा नहीं होता।
आपकी जानकारी के लिए बता दू, की चार्ल्स विल्किंस वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने श्री गीता का सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद किया था!
सर जी. बर्डवुड ने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट इण्डिया के अनुरोध पर एक पुस्तक लिखी थी ‘दी इंडस्ट्रियल आर्ट्स ऑफ इंडिया‘। इसके पृष्ठ ८३ पर वे लिखते हैं कि ‘बताया जाता है कि भारत में बुनी पंद्रह गज लम्बी और एक गज चौड़ी ढाका की मलमल का वजन केवल १०० ग्रेन होता था।‘
इसी पुस्तक के पृष्ठ ९५ पर लिखा है-‘अंग्रेज और अन्य यूरोपीय लेखकों ने तो यहां की मलमल, सूती व रेशमी वस्त्रों को ‘मोर के चक्षु‘ ‘मयूर कंठ‘ ‘सूर्य चन्द्र तारे‘ ‘पवन के तारे' ‘बहता पानी‘ और ‘संध्या की ओस‘ जैसी अनेक काव्यमय उपमाएं दी हैं।
सूती कपड़े और मलमल का उत्पादन इंग्लैण्ड में क्रमश: १७७२ तथा १७८१ में प्रारंभ हुआ। वो भी भारत की देख सीख कर!
एडवर्ड बेंज नामक यूरोपीय लिखता है -
"अपने वस्त्र उद्योग में भारतीयों ने प्रत्येक युग के अतुलित और अनुपमेय मानदंड को बनाए रखा। उनके कुछ मलमल के वस्त्र तो मानो मानवों के नहीं अपितु परियों और तितलियों द्वारा तैयार किए लगते हैं।"
ऐसे वस्त्र जहां बनते थे, उन कुटीर उद्योगों को अंग्रेजों और मुगलों ने षड्यंत्रपूर्वक नष्ट किया। जो अगूंठे उन्हें बनाते थे, उन्हें काट दिया गया। देश आजाद (?) होने के बाद आशा थी, हम पुन: अपनी जड़ों में जुड़ेंगे। जो अंगूठे कटे, वे वापस मिलेंगे। पर आज भी पश्चिमी तकनीक के आभामंडल (?) में देश जी रहा है। इसे बदलने हेतु चितंन की आवश्यकता है।
प्रत्येक सनातनी का ये कर्त्तव्य है की अपने खोई हुई संस्कृति, कला और विज्ञान को पुनः प्राप्त करने हेतु प्रयत्नशील हो, हर चीज में विदेशियों का मुह ताकने की आवश्यकता नहीं है... सब कुछ यही पर, इसी देवभूमि में उपलब्ध है... ये तो सनातनी आर्यावर्त है जहाँ से हमेशा विश्व को ज्ञान बांटा जा रहा है...
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